आज जब मेरे कानों ने पापा के मुँह से सुना की कल यानि 28 मार्च से एक बार फिर से हमारे बचपन के चैनल दूरदर्शन पर रामायण और दूरदर्शन भारती पर महाभाऱत का प्रसारण शुरू हो रहा है तो मैं ख़ुशी से फुले न समाया और उछल पड़ा और एक बार फिर पापा से बोल पड़ा पापा क्या सच में तो उन्होंने कहा हाँ बेटे हाँ कल सुबह 9 बजे से रामायण और 12 बजे से महाभारत का प्रसारण शुरू हो रहा है।
बस इतना सुना ही था की मैं बोल पड़ा की अब तो मजा आएगा हम फिर से पूरे परिवार के साथ रामयाण और महाभारत देखेंगे। इतना कहने के बाद मुझे न जाने कैसे बचपन की सारी बीती लम्हें याद आने लगी।
जी हाँ... मुझे आज भी याद है जब मैं छोटा था ये मेरे जीवन के बीत चुके करीबन आठ से दस साल पुरानी बात है जब मैं क़रीबन 8 से 10 साल का ही था उस समय गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी हां लेकिन गाँव-जवाँर में किसी किसी के घर सूर्य प्लेट देखने को मिल जाते थे उन्ही में से एक मेरा घर था। मेरे छोटे काका जिसे अब मैं काका न कहकर मुरली चाचा कहता हूँ ये गांव के स्कूल में पारा शिक्षक है जिन्हे सब प्यार से मास्टर जी कह कर बुलाते थे और अभी भी कह कर बुलाते है।
इन्होंने ही उस जमाने में टीवी रखी थी जो की मेरे पापा दिल्ली से ले के आए थे।मेरे पापा आनी मेरे छोटे चाचा के बड़े भाई, तब शायद ही किसी के घर टीवी देखने को मिलती थी, उस जमाने में गांव तक डिश टीवी भी नहीं पंहुचा था।
इन्होंने ही उस जमाने में टीवी रखी थी जो की मेरे पापा दिल्ली से ले के आए थे।मेरे पापा आनी मेरे छोटे चाचा के बड़े भाई, तब शायद ही किसी के घर टीवी देखने को मिलती थी, उस जमाने में गांव तक डिश टीवी भी नहीं पंहुचा था।
एक लम्बे से बांस में एंटीना नामक यंत्र को बांध कर उसे ऊंचाई पर खड़ा रखा जाता था जिससे टीवी में प्रसारण शुरू होता था। एंटीना से बहुत प्रॉब्लम होती थी टीवी देखने में इसलिए छोटे चाचा उससे तंग आकर उसकी जगह डीवीडी ले आये थे। डीवीडी तो जानते ही होंगेआप सभी जी हाँ...जो कैसेट से चलती थी और उसके साथ रामायण और महाभारत की पूरी सीरीज की कैसेट भी लेकर आये थे।
ये बात हमारे पुरे गांव के लोगों कानों तक पहुँच चुकी थी की मास्टर जी के घर कल रात सात बजे से आठ बजे तक महाभारत और आठ से नो बजे तक रामायण की एक डिस रोज़ चला करेगी। बस होना क्या था रोज रात ठीक सात बजे से ही घर में गांव की औरतों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता था।
ये बात हमारे पुरे गांव के लोगों कानों तक पहुँच चुकी थी की मास्टर जी के घर कल रात सात बजे से आठ बजे तक महाभारत और आठ से नो बजे तक रामायण की एक डिस रोज़ चला करेगी। बस होना क्या था रोज रात ठीक सात बजे से ही घर में गांव की औरतों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता था।
मुझे आज भी याद हैं जब घर के बरामदें से लेकर आँगन तक पसरी औरतों की भीड़ होती थीं और महाभारत शुरू होने से पहले चाचा कहते बेटे नितीश जा सबसे पांच-पांच रूपए ले ले फिर महभारत शुरू करते है जी हाँ मेरे बड़े चाचा प्यार से मुझे नितीश ही कहते थे ये नाम उन्होंने ने ही मुझे दिया है। बस उनके कहने भर की देर होती की में दौड़ के जाता और सबसे पैसे इकट्ठा कर ले आता था।
हाँ..... सब तो नहीं देते थे कुछ देते थे तो कुछ मुस्कुरा के बाद पे टाल देते थे मैं भी वहां से मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाता था और फिर शुरू होती थी महाभारत और उसके बाद रामायण। जिसे लोग बहुत उत्सुकता के साथ शांत होकर देखते थे और एक-एक बातों को बहुत ही गंभीर होकर सुनते थे। देखते ही देखते पता ही नहीं चलता था की कब दो घंटे बित जाते थे।
हम बच्चे भी उस वक़्त भले ही उसमे बोले गए कथनो को नहीं समझ पाते होंगे किन्तु महाभारत में अर्जुन और दुर्योधन और रामायण में राम और रावण की लड़ाई को बड़ी उत्सुकता के साथ देखते और सुनते थे। महाभारत और रामायण का चल रहा यह सिलसिला महीनो तक चलता रहता जब तक की यह खत्म नहीं हो जाता था।
हम बच्चे भी उस वक़्त भले ही उसमे बोले गए कथनो को नहीं समझ पाते होंगे किन्तु महाभारत में अर्जुन और दुर्योधन और रामायण में राम और रावण की लड़ाई को बड़ी उत्सुकता के साथ देखते और सुनते थे। महाभारत और रामायण का चल रहा यह सिलसिला महीनो तक चलता रहता जब तक की यह खत्म नहीं हो जाता था।
आज जब एक बार फिर रामायण और महाभारत के प्रसारण की बात सुनी तो एक बार फिर अपने बचपन में जीने का मन किया। अब तो सबके घर में अपनी-अपनी रंगीन टीवी है सुर्य प्लेट है और तो और अब तो गांव में बिजली भी आ गई है ऐसे में अब सब अपने घर में ही टीवी देखते है। अब वो एहसास नहीं है देखने में जो शायद पहले सबके साथ बैठ के देखने में हुआ करती थी।
अब सब कुछ बदल चूका है जिस गांव में पक्की सड़के नहीं हुआ करती थी अब वहां लंबी-चौड़ी पक्की सड़के है अब गांव में बड़ी-बड़ी गाड़ियां चलने लगी है पहले तो सिर्फ कच्चे मिट्टी के बने खपड़ेल के घर हुआ करते थे लेकिन अब खपड़ेल के घर तो बड़े-बड़े ईंट के पक्के मकानों के बिच दब गए है अब उनकी जगह इमारतों ने ले ली हैं। बस ऐसी ही कुछ भूली-बिसरी लम्हों को याद कर जी लेता हूँ।